5 बावरी भाइयो का इतिहास ।। सबल सिंह बावरी और केसरमल बावरी की साधना

5 बावरी भाइयो का इतिहास ।। सबल सिंह बावरी और केसरमल बावरी की साधना !!


आदेश सतगुरु जी !!

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे Blog लोक देवालय में यहाँ आपको भारत के अलग-अलग लोक देवताओ के बारे में जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं


हमारे प्रिये पाठको आज हम आप लोगो के सामने लेके आये हैं, हरियाणा के विख्यात लोक देवता जिनको लगभग हर व्यक्ति जानता होगा। इनकी पूजा भगतो के घरो में कुल देवता के रूप में होती है। इनका जन्म खरकड़ी में हुआ था। इन पांचो भाइयो के साथ साथ इनकी बहने शैडो, श्याम कौर , नथिया भी पूजी जाती हैं। ये कलयुग के अवतार हैं। इनके पिता का नाम हेमराज व माता का नाम कपूरी है। इनके मुख्य मंदिर हरियाणा के मुरथल तथा सफीदों शहर में हैं।


दादा केसरमल बावरी की साधना 



इनके मुख्य मंदिर मुरथल और सफीदो में ही क्यों बने ?

इनके मुख्य मंदिर मुरथल और सफीदो में ही क्यों बने उसके पीछे भी एक कहानी है। दोस्तों बताते है की जब इन पांचो बावरी भाइयो का मुगलो के साथ युद्ध छिड़ चुका था, तो ये लड़ते लड़ते हरियाणा के मुरथल शहर में पहुंच चुके थे। उस समय तक इनकी बन्दूक की गोलिया भी धीरे - धीरे खत्म होने लगी तो वहाँ पर उन्हें एक नागा साधु मिलता है। पांचो भाई नागा साधु को बताते है के कैसे उनका मुगलो के साथ युद्ध शुरू हुआ, और अब उनकी गोलियाँ खत्म होने वाली हैं। नागा साधु ने पांचो बावरी भाइयो को वरदान दिया के तुम अगर मिट्टी की गोलिया बनाकर भी अपनी बन्दूक से चलावोगे तो वह भी दुशमन को मार करेगी, परन्तु नागा साधु ने कहा की अगर तुम्हे लगे की तुम शहीद होने वाले हो तो, अपने और अपने परिवार के लोगो के शिश खुद काट लेना और अपने शरीर को मुगलो का हाथ मत लगने देना ऐसा करने से मेरा वरदान चिर काल तक तुम लोगो के साथ रहेगा। ( यह भी पढ़े :- 5 बावरी भाइयो का इतिहास )

मुरथल में इन पांचो बावरी भाइयो ने करीब 5 लाख मुग़ल सैनिक मार गिराए। उस समय पर भारत में मुगलो का राज था तो मुगलो ने अपनी पूरी ताकत लगा दी इन पांचो भाइयो को हारने में और अपनी सेना की बहुत बड़ी टुकड़ी लड़ने के लिए भेज दी। मुगलो की इतनी सेना देख पांचो बावरी भाइयो को ये पता लग गया था के शहीद होने का समय आ गया है तो उन्होंने अपनी तलवारो से अपनी बहनो के व अपने शीश धड़ से अलग कर दिए। जहाँ - जहाँ इन पांचो के शीश कट के पड़े वही पर आज उनके भव्य मंदिर बने हुए हैं।


जिस समय पर पांचो बावरी भाइयो ने अपने शीश काटे उस समय पर वे इतने ग़ुस्से में थे के उनके धड़ शीश काटने के बाद भी मुगलो का खात्मा कर रहे थे। पांचो बावरी भाइयो के धड़ मुरथल से लड़ते लड़ते सफीदों शहर पहुंच जाते है और वंहा पे पांचो बावरी भाइयो के धड़ को पीर असतबली शांत करते है। जंहा पर पांचो बावरियों के धड़ पड़े आज उसी स्थान पर सफीदों में इनके मंदिर हैं।


इसी वजह से इनके मुख्य मंदिर सफीदों और मुरथल में हैं। मुरथल में इनके शीश की पूजा होती है और सफीदों में इनकी समाधी है जहाँ इनके धड़ समाये हैं।

क्या भोग लगाया जाता है इनको ?

ये पाँचो भाई कलयुग के अवतार हैं और भगतो के दुःखों को पल में हरने वाले है। इनका मुख्य भोग लड्डू , पताशे और हुक्का का लगता है। किसी किसी भगत के घर पर इनको शराब का भी भोग लगाया जाता है।

सबल सिंह बावरी की साधना 




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