पूरणमल (चौरंगीनाथ) का इतिहास

 

आदेश सतगुरु जी !!

भारत शुरू से ही महापुरुषो की तपोस्थली रही है। भारत की भूमि ने देवों के लिए भी अपनी लीला दिखाने का समय-समय पर अवसर दिया है। देवभूमि भारत के किसी भी भू-भाग में चले जाइये। वहां आपको कोई ना कोई संत,महात्मा,भक्त और भगवान की लीलाओं की कुछ ना कुछ कहानियां सुनने को मिल जायेगी। आज हम इस लेख में आप लोगो के सामने ऐसे ही एक भगत पूरणमल (जो आगे चल कर चोरंगी नाथ के नाम से मशहूर हुए ) की कहानी लेके आये है, जिसने अपने भगति के बल पर भगवान को प्रशन ही नहीं किया बलकि रिद्धि -सिद्धि के मालिक भी बने और आज नव नाथ में उनका पूजन होता है। 

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे Blog लोक देवालय  में यहाँ आपको भारत के अलग-अलग लोक देवताओ के बारे में जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं

पूरणमल (चौरंगीनाथ) का इतिहास 

प्रिय पाठको प्राचीन समय की बात है सियालकोट में राजा शालीवाहन का राज्य हुआ करता था। राजा अपनी पत्नी इच्छरादे के साथ जीवन व्यतित कर रहे थे। शालीवाहन राजा धर्मपारायण एवं न्यायकारी थे। उनके राज्य की जनता भी उनका बहुत सम्मान करती थी। वह भी अपनी प्रजा को पुत्र के समान प्यार करते थे। परन्तु राजा शालीवाहन की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे बहुत चिंताग्रस्त रहते थे। राजा शालीवाहन ने संतान सुख प्राप्त करने के लिए वृद्धावस्था में दूसरा विवाह राजकुमारी न्यूनादे(लुनादे) से कर लिया, किंतु वह रानी भी राजा शालीवाहन को संतान सुख नहीं दें पायी। राजा अब पूरी तरह से टूट चुके थे, मंत्री और राजपुरोहित की सलाह से राजा शालीवाहन ने पुत्रेष्टी यज्ञ करवाया तो उनके बड़ी रानी इच्छरादे के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ, उसका नाम पूरण रखा गया। राजा शालीवाहन बड़ा खुश हुआ और राजपुरोहित से बालक के भविष्य के बारे में बताने को कहा, सभी विद्वानों ने बालक की जन्म कुंडली देखीं और उसका फलादेश देखकर सभी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई। उन्होंने कहा कि हे! राजन यह बालक बारह बरस तक आपके लिए भारी है और आप बारह बरसो तक इस बच्चे का मुंह नहीं देखे तो आपके लिए अच्छा है, यह बालक अद्भुत है और इसकी कीर्ति पूरे भारतवर्ष में फैलेगी। राजा ने विद्वानों की बात को मानते हुए बालक को जंगल में भेज दिया और साथ ही वही उसके लालन-पालन की समूचित व्यवस्था कर दी। समय के साथ-साथ बालक पूरण ने अध्ययन, शस्त्र-शास्त्रों में निपुर्णता हासिल कर ली। एकांतवाश में पूरणमल ने भगवान से साक्षात्कार कर लिया। बारह साल बीत जाने के बाद राजकुमार पूरणमल राजा शालीवाहन के दरबार में उपस्थित हुआ। राजकुमार से मिलकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और पूरण से कहा जाओ महल मे, तुम्हारी मांताएं तुम्हारी बांट देख रही है। राजकुमार महल में अपनी मां इच्छरादे से मिला तो वह बहुत खुश हुई। उसके बाद  राजकुमार ने अपनी जमाता(मौसी) न्यूनादे के पास जाकर प्रणाम किया। राणी न्यूनादे राजकुमार पूरण के सौंदर्य को देखकर चकित रह गई और वह कामवासना से वशीभूत होकर राजकुमार पर अनैतिक कार्य करवाने का दबाव दिया। राजा शालीवाहन वृद्ध हो गया था और रानी न्यूनादे जवान थी वह कामपिपासा बुझाने के लिए राजकुमार को पाना चाहती थी। पूरण इस बात को समझ गया और अपनी मौसी को कहा की आप तो मेरी मां के समान है और आपके साथ ऐसा गलत काम मैं नहीं कर सकता। राणी न्यूनादे इस अपमान का बदला लेने के लिए राजा शालीवाहन को त्रिया चरित्र दिखाते हुए कहती है, कि आपका पुत्र मेरे साथ गलत काम करना चाहता है और वह कामुक,विलासी है।  उसने मेरा शीलभंग करने का प्रयास किया है। राजा राणी की बातों में आ गया और बिना जांच-पड़ताल किये ही राजकुमार पूरणमल को मृत्युदंड दे दिया। जल्लाद राजकुमार पूरण को जंगल में ले गये पर राजकुमार का दिव्य तेज और सुंदरता देख जल्लाद का मन पसीज गया और राजकुमार को मारने की बजाय घायल कर एक कुंअें में फैंक दिया। जल्लाद ने वापस आकर राजा से झूठ बोल दिया कि हमनें राजकुमार को मार दिया है। 

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संयोगवश उसी समय गुरु गोरक्षनाथ जी उसी रास्ते से गुजर रहे थे। रात्रि विश्राम के लिए के लिए गोरक्षनाथ जी व उनके शिष्य ने उसी कुंअे के पास अपना डेरा डाल दिया। गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने एक शिष्य से पानी लाने को कहा। गुरु की आज्ञा पाकर वह पानी भरने उसी कुंअे के पास पहुंचा और पानी निकालने का प्रयास करने लगा, लेकिन उसके सारे प्रयास निष्फल हो गये, उसने वापस जाकर गुरु गोरक्षनाथ को पूरी बात बताई। तब गुरु गोरक्षनाथ जी ने उस कुंअे पर जाकर अपनी योग माया से जाना कि कुअें में कोई युवक पड़ा है। त्रिकालदर्शी गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपनी योग शक्ति से पूरणमल को बाहर निकाला। मूर्छित अवस्था से चेतन स्थिति में आते ही पूरणमल ने गुरु गोरक्षनाथ को प्रणाम किया ओर अपने साथ हुई सम्पूर्ण घटना बताते हुए गुरु गोरक्षनाथ जी से उनको अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया। हठयोगी गुरु गोरक्षनाथ ने जान लिया कि यह बालक कोई साधारण मानव नही है और उन्होंने पूरणमल को अपना शिष्य बना लिया, गुरु के तेजमयी स्पर्श से घायल पूरणमल पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए। गुरु गोरखनाथ ने उनका नाम चोरंगी नाथ रखा, इस प्रकार पूरणमल को अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया और आगे चल कर वे नव नाथ में भी शामिल हुए। 


रानी सुंदरा से विवाह 

गुरु गोरक्षनाथ और पूरणमल देश भर में घूमते-घूमते  राणी सुंदरा के राज्य में जा पहुंचे। राणी सुंदरा बड़ी क्रूर और अत्याचारी थी, उसे अपने राज्य में भिक्षा मांगने वाले साधु-संतों को पकड़ कर मारने में आनन्द आता था और उसने हजारों साधुओं को मार भी दिया था। गुरु गोरक्षनाथ ने पूरणमल को इस राज्य से भिक्षा ना लाने की हिदायत दी, पर पूरणमल को यह बात नागवार लगी क्योंकि गुरु और गुरुमंडली के भोजन का जिम्मा तो उसी पर था। अपने गुरु गोरक्षनाथ के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए पूरणमल राणी सुंदरा के महल पर पहुंच कर अलख जगा देता है। महल के दरवाजे पर तैनात कोतवाल ने भी पूरण को आगाह करते हुए कहा,’ अरे! साधु तुम्हे पता है राणी सुंदरा हर जोगी के प्राणों की प्यासी है वह तुम्हे मार देंगी, तू क्यो अपनी जान गंवा रहा है, जा भाग जा।’ तब पूरणमल जति ने जबाव देते हुए कहा,’जोगी को मरने-जीने की चाहत नहीं होती, मुझे भिक्षा लेनी है वो भी रानी सुंदरा से।’ कोतवाल ये समाचार राणी सुंदरा को दे दिया। राणी सुंदरा एक हाथ में भिक्षा और दूसरे हाथ में तलवार लेकर पूरणमल के पास पहुंच गई, पर जैसे ही राणी सुंदरा की नजर भक्त पूरणमल पर पड़ी तो उनके दिव्य तेज को देखते ही बेहोश हो गई। जब सुंदरा की चेतना लौटी तो योगी पूरणमल ने उनसे पूछा, “तुम इस प्रकार निर्दोष साधुओं को क्यों मारती हो यह कृत्य तुम्हे नरक गामी बनाता है। तब सुंदरा हाथ जोड़कर बोली हे! दिव्य पुरुष मुझे बताया गया था कि मेरा विवाह किसी योगी (साधु) से होगा, जो किसी राजपरिवार से होगा, अब मुझे कैसे ज्ञात हो कि कौन सा साधु राजपरिवार से है? इसलिए मैने मेरे राज्य में आने वाले साधुओं का कत्ल करना शुरू किया। अब मुझे विश्वास हो गया है कि आप किसी राजपरिवार से है अत: हे! योगीराज आप मुझ से विवाह कर लें। तब पूरणमल  ने कहा “राणी हम योगी है ये कार्य गृहस्थ जीवन जीने वालों का है अत: अब आप मुझे भिक्षा दें मेरे गुरु गोरक्षनाथ व मेरे गुरु भाई भोजन का इंतजार कर रहे हैं। सुंदरा गुरु गोरक्षनाथ की कीर्ति से वाकिफ थी उसने निवेदन किया कि मुझे गुरु गोरक्षनाथ के दर्शन करवा दें। इतना कह कर वह महल में गई और उच्च कोटि का भोजन लेकर गुरु गोरक्षनाथ के समक्ष उपस्थित हुई। सुंदरा ने सभी को भोजन करवाया। गुरु गोरक्षनाथ सुंदरा की सेवा भाव से अंत्यंत प्रसन्न हुए और सुंदरा से कुछ मांगने के लिए कहा। सुंदरा ने हाथ जोडकर कहा हे! योगीराज मेरा विवाह पूरणमल से करवा दें मेरी यही इच्छा है। गुरु गोरक्षनाथ ने पूरणमल को सुंदरा से विवाह करने को कहा।  गुरुदेव की आज्ञा पाकर पूरणमल  ने सुंदरा से विवाह कर लिया और उसके महल में आ गये, पर जति पूरणमल को ये बंधन रास नहीं आया वे अपने योग बल से महल से अंर्तध्यान हो गये। इस प्रकार पूरणमल के चले जाने से राणी सुंदरा बहुत आहत हुई और तड़फकर उसके प्राण निकल गये| पूरणमल वापिस: अपने गुरु गोरक्षनाथ जी के पास आ गये। 


पूरणमल का अपनी जन्मस्थली स्यिालकोट पर आना

गुरु गोरक्षनाथ ने अपने शिष्य पूरणमल से कहा की अब तुम वापस अपने मां-बाप एवं सौतेली मां(मोसी) के पास जाओं उन्हें माफ कर दों क्योंकि संत को किसी के प्रति द्वेष का भाव नहीं रखना चाहिए। गुरु की आज्ञा पाकर पूरणमल स्यालकोट पहुंच गये। जिस बाग में पूरणमल रुके वह हरा-भरा हो गया, यह बात राज्य में आग की तरह फैल गई कि जो बाग पिछले बारह बरसों में सूख गया था वह बाग एक तपस्वी के आने पर हरा भरा हो गया है। यह सूचना जब राजा को मिली तो राजा ने उस तपस्वी के दर्शन करने का निर्णय लिया, उन्होंने अपने मंत्री को तपस्वी को महल में लाने का आदेश दिया। मंत्री एवं दरबारी उस महातपस्वी के पास गये और महल में चलने का निवेदन किया। पूरणमल उनके साथ राजमहल में आ गये; उन्हें देखते ही राजा-रानी की आंखों में आंसू आ गये। तब पूरणमल ने कहा क्या बात है राजन्! तब राजा ने अपनी पूर व्यथा बताई कि कैसे मैने अपनी युवा राणी न्यूनादे की बातों में आकर अपने पुत्र को मृत्युदंड दे दिया था जो तुम्हारी ही उम्र का था।  राजा की बात सुनकर पूरणमल ने कहा कि मैं ही आपका पुत्र हूं और पूरणमल ने उनके चरण स्पर्श किये; यह बात सुनकर राजा,राणी, और प्रजा बहुत प्रसन्न हुये। राणी न्यूनादे अपने किये व्यवहार के लिए पूरणमल से माफी मांगी, यह देख राजा बहुत क्रोधित हुए और राणी न्यूनादे को मृत्युदंड देने का आदेश दिया, पर पूरणमल ने उसे माफ करने को कहा और बताया कि अगर ये मेरे साथ यह बर्ताव नहीं करती तो मुझे गुरु गोरक्षनाथ की शरण में जाने का अवसर नहीं मिलता इसलिए इसे माफ कर देना चाहिए। तब राणी न्यूनादे बहुत लज्जित हुई और पूरणमल के चरणों में गिरते हुए पुत्र-प्राप्ति की याचना करने लगी, पूरणमल ने उसे आशीर्वाद दिया की तुम्हारे मेरे जैसा ही पुत्र होगा जिसका नाम ‘रिसालु ‘ होगा, और मंत्री रुपेशशाह का पुत्र महतेशाह होगा इस प्रकार मंत्री रुपेशशाह को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। आगे बढकर पूरणमल अपनी मां इच्छरादे के पास पहुंचे पर उनकी मां पुत्र वियोग में रो रोकर आंखों की ज्योति गंवा चुकी थी, पूरणमल के अपनी मां को स्पर्श करते ही उनकी आंखों की ज्योति वापस आ गयी। उसने कहा पुत्र अब मुझे छोड़कर मत जाना तब योगी पूरणमल ने कहा,हे! माता आपने मुझे जन्म दिया है लेकिन दूसरा जन्म तो मुझे मेरे गुरु गोरक्षनाथ ने दिया है इसलिए इस पर केवल और केवल गुरु गोरक्षनाथ का ही हक है। अंत में माता इच्छरादे से पुन: मिलन और मृत्युपंरात अंतिम संस्कार करने का वचन देकर पूरणमल ने वहाँ से विदा ली और अपने गुरु गोरक्षनाथ जी के पास आ गये। 

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