माता पाथरी आली ( धूतनी ) की गुरु मुखी साधना और इतिहास

आदेश सतगुरु जी !! 


दोस्तों अगर आप भगताउ लाइन में है तो आपने कभी न कभी पाथरी वाली माता या धूतनी माता का नाम जरूर सुना होगा। आप में से बहोत से भगतो के घर में ये देवी कुल देवी के रूप में भी पूजी जाती होगी। दोस्तों पाथरी वाली माता एक बहुत ही शक्तिशाली देवी है जो अपने भगतो के मात्र थोड़ी सी सेवा से ही खुस हो जाती है और उनको मन चाहा वरदान देती है। भगतई लाइन में ये अपने भगतो का बड़े से बड़ा काम पल भर में ही कर के दिखा देती है। पाथरी वाली माता की पूजा तामसिक और सात्विक दोनों ही तरीको से की जाती है और ये दोनों ही प्रकार की पूजा से शीघ्र प्रश्न हो जाती है।


( नोट :- यह लेख पूर्ण रूप से इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी तथा गुरु भगतो के मुँह से सुनी कथाओ पर आधारित है। लेखक इसका पूर्ण रूप से सही होने का कोई दावा नहीं करता है। )

 नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे Blog  लोक देवालय  में यहाँ आपको भारत के अलग-अलग लोक देवताओ के बारे में जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं

माता पाथरी आली ( धूतनी ) का इतिहास 

माता पाथरी वाली को माता धूतनी के नाम से भी जाना जाता है।माता का मंदिर पानीपत सीक पाथरी गाँव की भुमि पर स्थित है। चैत्र और आषाढ के बुधवारों को यहाँ भारी मेले लगते हैं। माता का यह मंदिर 500 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है। माता पाथरी के विषय मे समाज में अनेकों दंत कथाएँ प्रचलित है। लोकगीतों और लोक मान्यताओं की माने तो माता पाथरी का जन्म गौड बंगाल के रहने वाले सोहन गुजर के घर मे हुआ था। पंडित जब इनका नामाकरण करने के लिए इनकी मस्तक रेखा देखने लगे तो माता अपना शक्तिरूप दिखा अट्टहास कर हंसने लगी। नवजात कन्या को अट्टहास करता देख पंडित घबरा गए और उन्होंने माता को अनिष्टकारी संबोधित करते हुए कुएं मे फिंकवा दिया। जहाँ नागे गुरु ने इनको कुएं से बाहर निकाला। शक्ति ने नागे गुरु से टक्कर ली और ईश्वर की प्रेरणा से नागे गुरु जी ने इनको एक डिब्बी मे बंद करके अपनी जटाओं मे स्थान दिया। इन देवी ने नागे गुरु की शक्ति से परिचित होकर उनकों अपने गुरु जी के रूप मे धारण किया।

कथा के अनुसार सीक पाथरी गाँवों के नत्थू और भरतू नाम के दो युवकों ने नागे गुरु जी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न होकर नागे गुरु ने वह डिब्बी नत्थू को देते हुए कहा इसको संभालकर रखना।एक दिन गुरु जी के प्रस्थान के पश्चात नत्थू ने डिब्बी को खोला तो माता प्रकट हो गयी। नत्थू डर गया किंतु बाद मे शक्ति के रहस्य को जानकर नत्थू और भरतू माता की सेवा करने लगे। गाँव के जमींदार जाट सिंघा द्वारा जाल के पेड़ के नीचे माता का स्थान बनवाया गया।तभी से माता की पूजा निरंतर होती आ रही है।

माता धूतनी की साधना 

दोस्तों माता धूतनी की साधना तामसिक और सात्विक दोनों ही तरीको से की जाती है। निचे दी गयी वीडियो में आप माता धूतनी की साधना और मंतर प्राप्त कर सकते हो। 


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