वीर बुलाकी का इतिहास !!

 वीर बुलाकी - तंत्र साधना के अनूठे देव। आगरा के लोक देवता !!



आदेश सतगुरु जी !!


नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे Blog लोक देवालय में यहाँ आपको भारत के अलग-अलग लोक देवताओ के बारे में जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं

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प्रिये पाठको कलयुग में ऐसे बहुत से वीर हुए है जिन्होंने अपनी शक्तियों के बल पर पूरी दुनिया में अपना डंका बजवाया है और अपने भगतो के ऐसे ऐसे काम सिद्ध किये है जिनको कोई महान शक्तियो का मालिक ही कर सकता है। आज हम आप लोगो के सामने एक ऐसे ही लोक देवता बाबा वीर बुलाकी को लेके आये है, जो कलयुग में सबसे शक्तिशाली और उग्र देवताओ में गिने जाते है। ये एक ऐसे देवता हैं जिनकी शक्ति ही गजब की है जहाँ अपनी बात पर रुष्ट होकर अड़ जाये तो फिर बड़े से बड़े देवी और देवता भी इसके सामने हाथ जोडते नजर आते है।फिर चाहे माँ काली ही सामने क्यों ना हो। इस वीर की बैठ सभी देवियो के पास है सभी देवियाँ इसकी और सभी देवियो का ये वीर बुलाकी जिसे चाहे उसे मना लें जिसका चाहे उसका हो जाएँ। इस कलयुग में ये वीर लोगो के अच्छे और बुरे दोनों तरह के काम करता है। 



वीर बुलाकी की शक्तियाँ

वीर बुलाकी का नाम सबसे शक्तिशाली और उग्र देवताओ में आता हैं,जिनके घर वीर बुलाकी कुल देव हैं और बाबा जी उस घर से खुश हैं तो ये उस घर में खुशियों की बारिश कर देते हैं, लेकिन अगर उस घर की कोई पीढ़ी बाबा श्री  का भोग समय से नहीं देती हैं तो ये जल्दी ही रुष्ट होकर बिना नजर में आये उस घर को समसान बना देते हैं। आज के इस कलयुग में कुछ लोगो ने पैसो के लालच में आकर इनसे गलत काम कराने शुरू कर दिए हैं जैसे पति-पत्नी में झगड़ा लगवाना,लड़कियों को वश में करवाना फिर उच्चाटन करवाना,कोई भी बीमारी लगवा देना,अपघात करवाना,घर में बंधन लगवाना,मोटापा बढ़ा देना, शादी तुडवा देना,....इत्यादी, क्युकी उनको पता हैं की जिस पर भी बुलाकी या मसानी चढ़ा दिया जाए उसको वही तांत्रिक बुलाकी चढ़ाकर मुक्त कर सकते है । मसानी का काट बाबा श्री ही है और उनका विद्या वही काट सकते है।


वीर बुलाकी का जन्म

वीर बुलाकी के जन्म के बारे में लोगो के दो मत हैं :-

पहला मत :-

कुछ लोगो के अनुसार एक बार गुरु गोरखनाथ कजली वन में अपना धुना लगा कर ध्यान में बैठे थे, योग विद्या और भविष्य का हाल जान लेने की विद्या के कारण उन्हें बागड़ देश के ददरेड़ा शहर के चौहान वंश के शासन को डावा डोल होने का नजारे का आभास होने लगा। गुरु गोरखनाथ को दिखने लगा की उनके परम् शिष्य गोगा वीर अपने क्रोध के कारण भारी संकट का सामना करेंगे और बागड़ देश में शनि देव का आगमन होग। उन्हें पता था की गोगा वीर अपने दोनों मौसेरे भाइयो को मारकर उनका अंत करेगा और भले ही कोई इसका विरोध न करें लेकिन धर्म राज शनि देव नही बख्सेंगे। इससे गोगा वीर को बचाने के लिए ही गुरु गोरखनाथ ने बाछल के द्वारा गोगा वीर को देश निकला दिया था। लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था,  गोगा वीर को देश निकाला दिए जाने के बाद भी गोगा वीर 8 साल तक रानी श्रियल से रात के अँधेरे में मिलते रहे। इसी प्रकार मिलन होने से बाबा जाहर जती के संपर्क में आने पर माता श्रियल गर्भ धारण कर लेती हैं। माता श्रियल के गर्भवती होते ही गुरु गोरख नाथ को शनि देव के बागड़ में प्रवेश करने के पुख्ता साबुत मिल जाते है। उन्हें पता चल जाता हैं के रानी श्रीयल के गर्भ में जो बच्चा हैं वह खुद शनि देव हैं तो वे अपने चेले गोगा पीर से उस गर्भ को त्यागने की बात कहते हैं। परन्तु वहां एक समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस गर्भ को त्यागा कैसे जाये क्युकी अगर किसी राज दाई को बुलावा भेजा जाये तो पूरी रियासत को पता चल जायेगा और ये गर्भ नाजायज माना जायेगा जिससे माता श्रीयल के सात्विकता को भी कलंक लगेगा और यदि इस गर्भ को गोगा वीर का मान दे दिया जाये तो गोगा वीर अपनी माँ बाछल को दिए वचन को भंग करने का दोषी माना जायेगा। इस समस्या का समाधान करने के लिए गुरु गोरखनाथ ने अपने वीरो को उस गर्भ को माता श्रीयल के गर्भ से मायावी रूप में हटाने को कहा लेकिन उनका एक भी वीर ऐसा करने में सफल नहीं हो पाया क्युकी माता श्रीयल एक स्त्री थी। तब गुरु गोरखनाथ ने जगत जननी आदि शक्ति माता मदानण का आवाहन किया और उस संकट की परिस्तिथी में सहायक होने की प्रार्थना की, माता मदानण ने तब मसानी का रूप भर कर उस गर्भ को रानी श्रीयल के गर्भ से हटाया। माता मदानण ने उस गर्भ को अपने आँचल में जगह दे कर बागड़ से प्रस्थान किया, लेकिन गर्भ सूर्य पुत्र शनि देव का अंश होने के कारण बहुत ही तेजमय था और उसका तेज इतना भयंकर था था की उसे संभालना ज्यादा देर तक नामुमकिन था। माता मदानण जैसे ही उस गर्भ को लेकर बागड़ से निकली और कजरी वन पहुंची वैसे ही गर्भ मां के आंचल को फाड़ते हुए कजरी वन में गिर पड़ा, जहां - जहां तक ये गर्भ गिरा कजरी वन में वहा वहा तक आग लग चली थी। फिसल कर जाते समय ये गोरख धुनें से टकराया जो दो हिस्सों में बंट गया। धुनें का एक हिस्सा वही गोरख नाथ की आन में रुक गया जो आगे चलकर कजरी वन के काळा देव के नाम से जाना गया और दूसरा हिस्सा दिल्ली के तख्त हजारा पर गिरा जो बुलाकी वीर के नाम से जाना गया। जिस वक़्त दिल्ली के हजारा तख्त पर गर्भ गिर था उस वक़्त वह मुगलों का शाशन था। जहाँ पर पंज पीर की बैठक थी। गर्भ का हिस्सा होने के कारन पंज पीरो ने उस तख्त का त्याग किया और उस तख्त पर फिर बाबा बुलाकी ने अपना पहली बार बाल रूप धारण कर उस तखत पर अपना अधिपत्य स्थापित किया।



दूसरा मत

कुछ लोगो का मानना हैं की बाबा श्री वीर बुलाकी कोई और नही स्वयंम् बाबा महाकाल भैरव नाथ है,जो कलयुग में मसान भैरव की छवि के साथ बुलाकी मसान के नाम से अवतरित हुए है क्युकी बुलाकी का अर्थ है बालक या बटुक और मसान का अर्थ है शमशान हैं। उनका मानना हैं की इनकी कोई ऐसी माँ नही है जिसकी योनि या गर्भ से इन्होंने जन्म लिया हो। बाबा श्री के पहनावे और रूप रंग से देखो तो, एक ऐसा बालक वीर जो रंग से काला हाथ में सोटा एक हाथ में मदिरा पान का पात्र (खप्पर) और लाल लंगोट के साथ लँगोट धारी है और लड्डुओं के साथ मदिरा भोग जो स्वयंम् महाकाल भैरव की छवी दिखती है। उनका मानना हैं की ये कट्टर सनातनी वीर है, इसलिए इसने इस्लाम के विरुद्ध सुअर की बली स्वीकार की है। बिगड़े रूप में ये मुसलमानो के मुर्दे भी नोच नोच कर खा जाये तभी तो ये समसान का अघोर वीर है अघोर वीर बुलाकी है। इस वीर की भक्ति नाथो की है और शक्ति भी नाथो की है।जो भी साधक इस वीर की सेवा पूजा पाठ सच्चे मन से निस्वार्थ भाव से करेगा ये वीर बाबा उस साधक को नाथो की सेवा में लगा देते है।फिर ये इस साधक को भुत प्रेतों की सेवा में नही रहने देते है।

वीर बुलाकी का खेड़ा 

वीर बुलाकी का खेड़ा उत्तर प्रदेश के आगरा के रसूलपुर, अर्जुन नगर में हैं। यहाँ पर कृष्णा पक्ष की पडवा दिन लाखो की संख्या में लोग वीर बुलाकी के दर्शन करने आते हैं। लोगो का मानना हैं की जिस पर बाबा वीर बुलाकी खुश हो जाते हैं उस पर धन और दौलत की वर्षा कर देते हैं, उसके अन्न और धन के भंडारे सदा भरे रहते हैं। हजारो की संख्या में भगतजन बाबा वीर बुलाकी के सामने उनके खेडे पर मन्नत मांगते हैं। 


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