बाबा मोहन राम का इतिहास
आदेश सतगुरु जी !!
भारत देश में अनेक देवी-देवताओं ने समय-समय पर भगतो का दुःख दूर करने के लिए अवतार लिए हैं। यहां के लगभग हर राज्य में आपको कोई न कोई धार्मिक स्थान अथवा किसी ना किसी देवी-देवता का मंदिर देखने को अवश्य मिलेगा। यदि भारत को दैवीय चमत्कारों का देश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज मैं आप लोगो के सामने ऐसे ही एक लोकदेव की कहानी लेकर आया हूँ जिन्हें कलयुग के अवतारी बाबा मोहनराम के नाम से भगतो द्वारा जाना जाता है।
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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे Blog लोक देवालय में यहाँ आपको भारत के अलग-अलग लोक देवताओ के बारे में जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं
बाबा मोहन राम का इतिहास
दोस्तों बाबा मोहन राम कलयुग में भगवान् श्री कृष्ण के दूसरे अवतार के रूप में पूजे जाते है। बाबा मोहन राम एक भारतीय अध्यात्मिक गुरु है जिनकी उनके भक्त ऋषि, सतगुरु, फ़कीर और भगवान् कृष्ण के रूप में पूजा करते है। ऐसा माना जाता है कि बाबा मोहन के पास चमत्कारी शक्तियां है जिनका इस्तेमाल वो जन कल्याण के लिए करते है। उनके सर के चारो तरफ एक सोने की अंगूठी है जिसमे सामने एक मोर पंख लगा हुआ है साथ ही में वह मोटी रुद्राक्ष से बनी माला भी पहनते है। बाबा मोहन राम की सवारी भी गुगा पीर की तरह नीला घोडा है इसलिए उनको नीले घोड़े वाले के नाम से भी जाना जाता है। (यह भी पढ़े :- गुगा जाहरवीर का इतिहास !! ) ऐसा माना जाता है कि उनका नीला घोडा भगवान् शेषनाग का अवतार है जिसकी गति हवा से भी तेज़ है। बाबा मोहन राम को एक साधारण कपडे पहने हुए साधु के रूप में दिखाया जाता है। बाबा मोहन राम को दिव्य ज्योति के रूप में भी पूजा जाता है जो चमत्कारी शक्तियां रखती है।
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बाबा मोहन राम की तपोस्थली राजस्थान भिवाड़ी में है। यहां बाबा मोहनराम का मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दौज को लगता है। इसके अलावा हर माह की दौज पर मेला भरता है। जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करने के लिए यूपी, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान से श्रद्धालु आते हैं। भगतो के अनुसार करीब 350 साल पहले मिलकपुर गुर्जर गांव में रहने वाले लल्लू भगत को बाबा मोहनराम ने दर्शन दिए। बाबा मोहनराम ने लल्लू भगत को वचन दिया कि वह उनकी सेवा करे ऐसा करने से उनके द्वारा प्राणीमात्र की सभी समस्याओं का समाधान होगा। उनके द्वारा कहे गए वचनों को वह पूरा करे ऐसा करने से यह आशीर्वाद उनके वंशजों पर भी बना रहेगा। जिसके बाद लल्लू भगत ने काली खोली बाबा के प्रकट होने वाले स्थान पर ज्योत जलाई। साथ ही मिलकपुर स्थित जोहड़ की पाल पर कुटिया बनाकर बाबा मोहनराम की भक्ति करने लगे। तब से मिलकपुर में बाबा मोहनराम का पूजास्थल बनाकर अखंड ज्योत के साथ पूजा होने लगी। बाबा के मंदिर में श्रद्धालु आने लगे। इसके बाद भिवाड़ी क्षेत्र के अलावा दूर-दराज से भी श्रद्धालु दर्शनों को आने लगे। फिलहाल लल्लू भगत की सातवीं पीढ़ी के वंशज मंदिर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
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बाबा मोहनराम का भोग
बाबा का मुख्य भोग शक्कर, दूध का होता है, खीर भी प्रमुखता से मानी गई है। लेकिन अब बदलते परिवेश में हर माह की दोनों द्वितीया तिथि को विशाल भंडारों में कई प्रकार के व्यंजन बांटे जाते है। जिसमें खीर, आलू की सब्जी, सीताफल, छोले, मिक्स वेजिटेबल, चावल, दाल, कढ़ी, राजमा, पूरी, रोटी , फल, मेवा, मिष्ठान, समोसे, ब्रेड पकोडे आदि शामिल है।( यह भी पढ़े :- माता मदानण का इतिहास )
बाबा मोहनराम का स्तुति मन्त्र
ॐ श्री बाबा मोहनराम देवाय नमः
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