माता मनसा देवी का इतिहास और साधना

 आदेश सतगुरु जी !!

दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में अनेको देवी देवताओ का वर्णन आता है। आज मैं आप लोगो के सामने उन्ही में से एक देवी का इतिहास लेके आया हूँ जो हमारे हिन्दू धर्म में बहुत सालो से पूजनीय है। ये देवी भगतो के मन की बात जान कर उनका उद्धार करती है और पल भर में ही अपने भगतो के सभी कष्टों का निवारण करने की शक्ति रखती है। इन्हे साँपो की देवी भी कहा जाता है। कुछ भग्तजन समझ गए होंगे के हम किस देवी की बात कर रहे है लेकिन अगर आप नहीं समझे है तो मैं आप को बता दूँ की आज हम आप लोगो के सामने माता मनसा देवी का इतिहास लेके आये है जिन्हे कलयुग में विष की देवी के नाम से भी पूजा जाता है।

( यह भी पढ़े :-  बाबा मोहन राम का इतिहास ​!! )

( नोट :- यह लेख पूर्ण रूप से इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी तथा गुरु भगतो के मुँह से सुनी कथाओ पर आधारित है। लेखक इसका पूर्ण रूप से सही होने का कोई दावा नहीं करता है। )


नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे Blog  लोक देवालय  में यहाँ आपको भारत के अलग-अलग लोक देवताओ के बारे में जानने को मिलेगा। तो चलिए शुरू करते हैं

माता मनसा देवी का इतिहास 

दोस्तों मनसा देवी को भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री माना जाता हैं। कहा जाता है की इनकी उत्पत्ति मस्तक से हुई है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारत के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति महर्षि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इनके भाई बहन गणेश जी, कार्तिकेय जी, देवी अशोकसुन्दरी, देवी ज्योति और भगवान अय्यपा हैं, इनके प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। समय आने पर भगवान शिव ने अपनी पुत्री का विवाह जरत्कारू के साथ किया और इनके गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ जिसका नाम आस्तिक रखा गया। आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया इसलिए इनके विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। 14 वी सदी के बाद इन्हे भगवान् शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। यह मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था, परंतु यह भी कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ। विष की देवी के रूप में इनकी पूजा झारखंड बिहार और बंगाल बड़े धूमधाम से हिन्दी और बंग्ला पंचांग के अनुसार भादो महीने मे पूरी माह इनकी स्तुति होती है। कहा जाता है की इनके सात नामों के जाप से सांपो का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी। मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा मूर्तियों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है। यह भी कहा जाता है की पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नी सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्‍मेजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। तब भगवान् शिव ने अपनी पुत्री मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया। राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।


पुराणों में माता मनसा देवी का साक्ष्य 

अलग अलग पुराणों में माता मनसा की अलग अलग कहानी है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म शिव के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा। विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी। उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ। उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए तथा उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया। मंगलकाव्य बंगाल में 13वीं तथा 18वीं शताब्दी में लिखित काव्य है जो कई देवताओं के संदर्भ में लिखित हैं। विजयगुप्त का मनसा मंगल काव्य और विप्रदास पिल्ले का मनसाविजय (1495) मनसा के जन्म का वृत्तांत बताते हैं। मनसाविजय के अनुसार वासुकि नाग की माता नें एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो भगवान् शिव अंश से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई, जो मनसा कहलाई। जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए, तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है,तब भगवान् शिव मनसा को लेकर कैलाश गए। माता पार्वती नें जब मनसा को शिव के साथ देखा तब चण्डी रूप धारण कर मनसा के एक आँख को अपने दिव्य नेत्र तेज से जला दिया। मनसा ने ही शिव को हलाहल विष से मुक्त किया था। माता पार्वती ने मनसा का विवाह भी खराब किया, मनसा को सर्पवस्त्र पहनने को कहकर कक्ष में एक मेंढक डाल दिया। जगत्कारु भाग गये थे, बाद में जगत्कारु तथा मनसा से आस्तिक का जन्म हुआ।


माता मनसा देवी का मंदिर 

माता मनसा देवी का मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है तथा यह हरिद्वार से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर माता शक्तिपीठ पर स्थापित होकर भगतो के दुख को दूर करतीं हैं। यहाँ 3 मंदिर हैं। यहाँ के एक वृक्ष पर धागा बाँधा जाता है परंतु मुराद पूरी होने के बाद धागा निकालना आवश्यक है। हरियाणा में माता मनसा देवी चंडीगढ़ के समीप पंचकूला में विराजमान होकर दुख दूर करतीं हैं। यहाँ नवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है, यहां 100 एकड़ में फैला विशाल मंदिर है। यह मंदिर सन् 1811-1815 के मध्य राजा गोलासिह द्वारा बनवाया गया था।


माता मनसा देवी की साधना 

इस साधना को शुरू करने से पहले आपको लाल चन्दन की लकड़ी, नीला व सफेद धागा जो 8-8 अंगुल का हो। कलश के लिए नारियल, सफेद व लाल वस्त्र, फल, पुष्प, दीप, धूप व पॅच मेवा समेत आदि सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए। इसके बाद प्रातःकाल स्नान ध्यान करके पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र बिछा दे और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछाकर उस पर एक 7 मुख वाला नाग ऑटे का बनाकर स्थापित करें। दूसरे पात्र में एक शिवलिंग स्थापित करें। पहले गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें उसके बाद भगवान बिष्णु का फिर शिव जी का पंचोपचार पूजन करें। पूजन में धूप, दीप,फल, पुष्प, नैवेद्य आदि सभी को अर्पित करें। यह साधना रविवार को सांय 7 से 11 बजे के बीच करनी चाहिए। साधना करने के लिए रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए। साधना काल में अखण्ड ज्योति जलती रहनी चाहिए। निचे दिए गए मन्त्र का सवा लाख बार जप करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। मन्त्र में जहां पर अमुक शब्द लिखा वहां पर अपनी कोई भी मनोकामना का प्रयोग कर सकते है।

 ‘‘ऊॅ हु मनसा अमुक हु फट'' 

दोस्तों उम्मीद है के आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा, लोक देवताओ के बारे में और अधिक जानने के लिए हमारे  फेसबुक पेज को फॉलो करे। यह लेख आपको कैसा लगा और हम इसको ओर कैसे सुधार सकते हैं निचे कमेंट कर के जरूर बताइयेगा। हमे आपके जवाब से खुशी होगी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कलवा पौन का इतिहास

नथिया माई का इतिहास

नौ गजा पीर का इतिहास और साधना !!